प्रागेतिहासिक काल
पूर्व
पाषाण काल – 1 रायगढ़
के सिंघनपुर गुफा , मानव आकृति डंडे एवं सीढ़ीनुमा
आकृतियां प्राप्त प्राचीनतम स्थान है।
2-
कबड़ा पहाड़ छिपकली, लाल
सांभर, घड़ियाल एवं मानव समूह का चित्र (सर्वाधिक
जानकारी यहां से मिलती है। )
मध्य पाषाण काल- रायगढ़ के कबड़ा पहाड़ के निकट लघुकृत पाषाण , औजार, अर्द्ध
चन्द्राकर एवं लम्बे औजार (कुदाल) थे।
उत्तर पाषाण काल - रायगढ़ जिला - महानदी
घाटी (सिंघनपुर के पास) लघुकृत पाषाण औजार , बिलासपुर
के धनपुर।
नव पाषाण काल - राजनांदगांव (चितवा
डोंगरी) मानव एवं पशुओं की आकृति
रायगढ़
जिला- टेरम
दुर्ग
- अर्जुनी
तीनो
जगह से चित्रित हथौड़ा मिला है।
आद्य एतिहासिक काल
ताम्र युग एवं कास्य युग - छत्तीसगढ़ में ताम्र एवं कास्य युग की साक्ष्य प्राप्त नहीं होते है .
लौहयुगीन - छ0ग0 में लौह युगीन साक्ष्य महापाषाण स्मारकों
के रूप में प्राप्त होते है। इसे अंग्रेजी में
(डालेमन) कहते है जो कि शवों को गड़ाते समय उपयोग किये गये विशाल शिलाखण्ड
है।
दुर्ग जिला- करारी करभदर चिरचारी सोरर, लोहारा, करकभाठा
लोहारा में लोहे को गलाने का प्रथम साध्य मिला है ।
करकभाठा में लोहे से बने औजार एवं
मृदभाण्ड मिलते है।
बस्तर का गढ़ घनौरा में 500 महापाषाण स्मारक प्राप्त हुए है।
रमेन्द्रनाथ मिश्र ने खोजा।
चितव डोंगड़ी की खोज (रमेन्द्रनाथ मिश्र
एवं भगवान दास बघेल ने)
रायगढ़ जिले में - बसनाझर ] ओंगना ] कर्मागढ़] कोरागढ़ ]भांवर खोल] गिद्धा] लेड़वा
भाड़ा]
सोनबरसा
( रायगढ़ जिला को शैलाश्रयों का गढ़ कहा जाता
है।)
वैदिक - कौसितिकी उपनिषद में विध्यपर्वत का नाम रेवा के नाम से है।
उत्तर वैदिक काल
उत्तर
वैदिक काल में छ0ग0 में आर्यो का आगमन एवं प्रसार हुआ।
रामायण काल
कोसलखण्ड ग्रन्थ के अनुसार विध्यचल के
दक्षिण में नागपटटन जगह में कोशल राजा था इसी के नाम से छ0ग0
का नाम कोशल पड़ा। भानुमन की पुत्री कौशिल्या।
उत्तर कौशल लप की राजधानी साकेत (आयोध्या
द कोशल की राजधानी श्रावस्ती (कुश स्थली)
रामायण से संबंधित स्थल -
सरगुजा - रामगढ़ सीता बेंगड़ा] लक्ष्मण बेंगड़ा] किष्र्किंधा
पर्वत]
हाथी खोह
जांजगीर चांपा – खरौद] (खर दूषण के राज्य)
शिवरी
नारायण
बलोदा बाजार - तुरतुरिया (वाल्मीकि आश्रम)
धमतरी - सिहावा पर्वत श्रृंगी ऋषि आश्रम
कांकेर - पंचवटी
(सीता अपहरण)
बस्तर - दण्डकारण्य (साल वृक्ष का वर्णन)] हनुमान संजीवनी बूटी का वर्णन
बिलासपुर - कोसल (रामायण में बस्तर को
दण्डकारण्य कहा गया है। महानदी बेसिन को द. कोसल कहा गया है।
महाभारत कालीन छत्तीसगढ़
महाभारत में दक्षिण कोशल को प्राक्कोशल तथा बस्तर को कान्तार कहा गया है ! महाभारत में कर्ण की दिग्विजय एवं राजामल्ल के दक्षिण मार्ग के खोज का वर्णन।
· महाभारत के वन पर्व (18 वर्ष) में वर्णित ऋषभतीर्थ का समानता जांजगीर चांपा सक्ती के गुंजी (दमाऊ दरहा) से स्थापित की जाती है.
· महाभारत
में वर्णित राजा ताम्रध्वज एवं उसकी राजधानी मणिपुर या हीरापुर जो कि वर्तमान में
रतनपुर है।
·
मोरध्वज
की राजधानी आरंग था आरंग की
कथा का वर्णन बांसगीत में होता है।
·
अर्जुन और
चित्रगंदा के पुत्र वभ्रवाहन द कोसल के शासक थे जिसकी राजधानी चित्रांगदापुर था।
जो वर्तमान में सिरपुर है।
महाजनपद काल
कोसल ]द. कोसल]
सय्यू नदी]
द. कोसल राजधानी कुश स्थली (सिरपुर)
·
बौद्ध
ग्रंथ अवदान शतक एवं व्हेनसांग की सी0यु0की0
(पुस्तक में ) छ0ग0 का वर्णन किया सालो के रूप में किया।
जिसके अनुसार गौतम बुद्ध द कोसल की राजधानी आये थे तथा तीन माह तक रूके थे।
· चेदि महाजनपद के अंतर्गत सम्मिलित होने के कारण चेदिगढ़ बना जो कि आगे चलकर छ0ग0 बना। चेदि जनपद वर्तमान में बुंदेलखण्ड के अंतर्गत आता था .
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